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सैनी समाज प्रतिनिधि मंडल में आपका स्वागत

सैनी समाज प्रतिनिधि मंडल सैनी समाज के लोगों को एक साथ आने में मदद करने के लिए एक संगठन है। यह ऊर्जावान उत्साही और समर्पित व्यक्तियों का एक समूह है जो किसी भी रूप में सामुदायिक समुदाय की सेवा करने के लिए हमेशा खुश रहते हैं चाहे वह वित्तीय या शैक्षिक या स्वास्थ्य से संबंधित मामले आदि हो। मुख्य रूप से, यह संगठन के उत्थान के लिए शैक्षिक और नौकरी उन्मुख कार्यक्रमों के लिए काम करता है। समुदाय। फिर भी, यह रक्तदान परिसर, अखिल भारतीय सैनी अधिकारियों की बैठक, सफल और प्रतिभाशाली व्यक्तियों विशेष रूप से बच्चों आदि के लिए प्रतिभा सुविधा कार्यक्रम आयोजित करने जैसे कल्याण कार्यक्रमों के क्षेत्र में उद्यम करने से नहीं रोकता है। इसके सदस्य लोगों को काम करने के लिए प्रेरित करने के लिए काम करते हैं। समुदाय। यह समुदाय कल्याण के महान कारण के लिए समुदाय के उदार परोपकारी व्यक्ति को समन्वय और जोड़ने के लिए भी समर्पित है। समुदाय के भाई-बहनों की समस्या के समाधान के लिए हमेशा शत-प्रतिशत प्रयास करता है।

सैनी समाज की गौरव गाथा

सैनी समाज का इतिहास किसी भी जाती, वंश एव कुल परम्परा के विषय मे जानकारी के लिये पूर्व इतिहास एव पूर्वजो का ज्ञान होना अति आवश्यक है| इसलिए सैनी जाती के गोरव्पूर्ण पुरुषो के विषय मे जानकारी हेतु महाभारत काल के पूर्व इतिहास पर द्रष्टि डालना अति आवश्यक है| आजसे ५१०६ वर्ष पूर्व द्वापरकाल के अन्तिम चरण मे य्द्र्वंश मे सचिदानंद घन स्वय परमात्मा भगवान् श्रीकृषण क्षत्रिय कुल मे पैदा हुए और युग पुरुष कहलाये| महाभारत कई युध्दोप्रांत यदुवंश समाप्त प्राय हो गया था|परन्तु इसी कुल मई महाराज सैनी जिन्हे शुरसैनी पुकारते है| जो रजा व्रशनी के पुत्र दैव्मैघ के पुत्र तथा वासुदेव के पिता भगवन श्रीकिशन के दादा थे| इन्ही महाराज व्रशनी केछोटे पुत्र अनामित्र केमहाराज सिनी हुये, इस प्रकार महाराज शुरसैनी तथा सिनी दोनों काका ताऊ भाई थे| इन्ही दोनोंमहापुरुषों के वंशज हम लोग सैनी क्षत्रिय कहलाये| कालांतर मई वृशनी कुल का उच्चारण सी वृ अक्षर का लोप हो गया और षैणी शब्द उच्चारित होने लगा जो आज भी उतरी भारत के पंजाब एव हरियाणा प्रांतो मे सैनी शब्द के एवज मे अनपढ़ जातीय बंधू षैणी शब्द ही बोलते है, और इसी सिनी महाराज के वंश परम्परा के अपने जातीय बह्धू सिनी शब्द के स्थान पर सैनी शब्द का उच्चारण करने लगे है| जो सर्वथा उचित और उत्तम है| कालांतर मे वृशनि गणराज्य संगठित नहीं रहा और भिन्न भिन्न कबीलों मे विभाजित होकरबिखर गया| किसी भी भू भाग पर इसका एकछत्र राज्य नहीं रहा किन्तु इतिहास इस बात का साक्षी है| की सैनी समाजके पूर्वज क्षत्रिय वंशएव कुल परम्परा मे अग्रणी रहे है|

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